ईश्वर द्वारा निर्मित इस सृष्टि में पुरूष और स्त्री दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं और समाज के सभी वर्ग इन दोनों के सहयोग पर ही निर्भर है । ऐसी स्थिति में महिलाओं को एक अलग वर्ग का दर्जा देते हुए, उनके लिए आरक्षण की बात करना पूर्णत: बेमानी ही है क्योंकि आरक्षण का मुख्य उद्देश्य सुविधाओं और साधनों से वंचित समाज के किसी वर्ग को उचित सहायता प्रदान करना है जिससे वे विकास के पथपर अन्यों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके । इस दृष्टि से अगर हम ईमानदारी से विचार करें तो हम पाएंगे कि जहाँ-जहाँ भी महिलाएँ प्रगति के पथ पर थोड़ी पीछे रह गई हैं, वहाँ-वहाँ इनके सहयोगी पुरूष भी शिक्षा व अन्य क्षेत्रों में बहुत पीछे हैं । अत: इन वर्गों के पुरूषों की स्थिति को नकारते हुए, सिर्फ महिलाओं के लिए ही सरकारी नौकरियों में आरक्षण की बात करना, समाज को एक गुमराह करने वाले कदम से अधिक और कुछ नहीं है क्योंकि हम स्त्री और पुरूष इन दोनों में से किसी एक की उपस्थिति के आधार पर समाज के किसी भी वर्ग की परिकल्पना नहीं कर सकते हैं । अत: एक के बारे में विकास की योजनाएँ बनाकर तथा दूसरे को पूर्णत: विस्मृत कर, हम सामाजिक विकास के किसी लक्ष्य को भी नहीं प्राप्त कर सकते हैं ।
यही नहीं जब हमारे पुरूषों के कंधे आर्थिकता के बोझ तले अत्यधिक दुखने लगे तो उन्होंने महिलाओं के कामकाजी होने की वकालत जोर-जोर से शुरू कर दी । फलत: आज महिलाओं पर घर और बाहर दोनों ही तरह की जिम्मेदारियां डालते हुए, उनका पुरूष वर्ग द्वारा बराबर शोषण ही किया जा रहा है । इस तरह आज हमारी कामकाजी महिलाओं को भी स्वालंबन और झूठे आडम्बर के बीच अपने जीवन का सुख एक मृग-मारिचिका सी ही प्रतीत हो रही है ।
इसी तरह यह एक कटु सत्य है कि हमारे देश की ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं ही अधिक कमजोर व पीड़ित है और सरकारी नौकरियों में महिलाओं के आरक्षण से शहरी क्षेत्र की शिक्षित महिलाओं को ही अत्यधिक फायदा पहुंचेगा, जिससे पहले से नौकरी को उपलब्ध घर में एक अतिरिक्त आय का साधन ही उपलब्ध होगा । इतना ही नहीं ये कामकाजी महिलाएँ नौकरी में अत्यधिक व्यस्तता की वजह से अपने घरेलू कार्यों को नौकरानी, महरी और आया के माध्यम से पूर्ण करती है और इस तरह वे समाज में एक अलग कमजोर व शोषित महिला वर्ग को निर्मित करती है ।
अत: मेरे अपने विचार से आज महिलाओं को नौकरी व पैसे को अपने जीवन का प्रमुख उद्देश्य मानने के स्थान पर, अपनी घरेलू जिम्मेदारियों को बखूबी ढंग से निभाते हुए, कुछ रचनात्मक कार्यों जैसे साहित्य-लेखन, संगीत, नृत्य व समाज-कल्याण की विभिन्न गतिविधियों में हिस्सा लेना चाहिए । इससे जहाँ समाज में उनकी मान-प्रतिष्ठा बढ़ेगी, वहीं इस तरह वे जीवन की अर्थवत्ता को प्राप्त कर, सही रूप में जीवन के सुख से भी परिचित होंगी ।
- श्रीनिवास कृष्णन
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