Sunday, March 15, 2009

कविता : मैं सागर भाँति ही प्रेम करूंगा

देखना सागर भाँति ही प्रेम करूंगा ।
लहरों की भाँति ही मैं बाहें फैलाउंगा ।
तट की माटी रूपी उसे अंकशयनी बनाऊंगा ।
और अपने प्रेम की सुवास बिखराऊंगा ।

हूँ भी मैं सागर की तरह थोड़ा खारा ।
फिर भी है गुण मुझ में ढेर सारा । .
थामुंगा जब किसी को अपनी बाहों में ।
छोडुंगा नहीं उसे कभी बीच राहों में ।

लहर रूपी मन लौटेगा मेरा बारम्बार ।
क्योंकि तट रूपी प्रेमिका करेगी मेरा हमेशा इंतजार ।
इस तरह होगा हमारा हजार बार संगम ।
फिर भी नहीं टूटेगा लहर भाँति कभी यह क्रम । .

देखना, मेरे प्रेम में होगी बहुत सी अच्छाई ।
क्योंकि होगी इसमें सागर की गहराई ।
और गहराई में खोज लूंगा, मैं वह मोती ।
जिससे कभी नहीं बुझ पाएगी हमारे प्रेम की ज्योति ।

सागर समान होगा मेरा प्रेम विशाल ।
अगर सुनाए वह कभी अपना दुखड़ा हाल ।
तो लहर भाँति फैल जाएगी मेरी यह बाहें ।
जिसमें बहुत सकुन पा, वह चैन से लेसकेगी आहें ।

लेकर इसी प्रेम का सहरा ।
बनाना चाहूं मैं घर एक प्यारा ।
अत: भगवन् प्रेम से भर दें मेरे हृदय की गागर
और सच में बनाना, तू मेरे प्रेम को सागर ।
- श्रीनिवास कृष्णन
E-Mail : shrinivas_krishnan@yahoo.co.uk
Web Site : www.shrivichar1.ewebsite.com

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